ए ज़िन्दगी इतना बता, तू साथ कब तक निभाएगी.
सुबह थी, फिर दिन चढ़ गया
अब रात कब आ जाएगी।।
कलियों से भी नाज़ुक थी मैं जीवन के पहले एक पहर में,
खिलकर बनी फिर फूल मैं अपने जीवन के दोपहर में.
सूखकर गिर भी पड़ूँगी आख़िरी तीजे पहर में,
अरुणोदय से पहले अस्त होगा जब रात काली आएगी.
ए ज़िन्दगी इतना बता तू साथ कब तक निभाएगी।।
माँ- बाप ने एक बीज बोया, पति ने सींचा नेह से,
फिर वक़्त पलटा बीज जन्मा इस नवेली देह से।।
बीज फिर पौधा बना, आकार दिया स्नेह से
मैं परिणीता हू सोचती कि मौत कब आ जाएगी।।
ए ज़िन्दगी इतना बता तू साथ कब तक निभाएगी,
सुबह थी फिर दिन चढ़ गया अब रात कब आ जाएगी।।