पत्थर की संवेदना

ए मेरे संग तराश ,
पत्थर हूँ पत्थर रहने दे !

यूँ बूत की शक़्ल में न ढाल मुझे !
इस दिखावे भरे संसार में 'खुदा' बन जाऊंगा !
अपने बाकीं प्रस्तरों के लिए जुदा बन जाऊंगा !!!

बेवजह मुझे अना की आस न है
बस जो भी हो तू छोड़ दे मेरे हाल मुझे
पत्थर हं पत्थर रहने दे
यूँ बूत की शक्ल में न ढाल मुझे !!

इक पत्थर के आगे जो हाथ फैलते हैं ,
दुआ मांग कर मुझे ईश से तौलते हैं !
ए मेरे संगतराश ,
उन आश नयन का ख्याल कर जरा !

बनाकर मुझे ब्रह्म-बूत ,उन सबकी आह लगेगी तुझे !
पत्थर हूँ ,पत्थर रहने दे ,
यूँ झूठी उम्मीद वाले बूत की शक्ल में न ढाल मुझे !! 
            


तारीख: 22.06.2017                                    आदित्य प्रताप सिंह‬









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