पिया परदेश न जाओ

 पिया परदेश न जाओ
मन कहता लोट आओ
देखो मुरझा गयी है 
बिखर गई हैं तुलसी
तुम बिन कितनी
उदास हैकोमल 
वो बगिया की
गौरया सुनो
सुनो चुप चुप
सी रहती है
अपनी बिटिया
और वो बाहर
पुकारती हे
हमारी गइया
देखो गहने
नही प्रीतम
मुझे प्रीत की 
चुनर ही काफी हे
कम खा लेंगे
साथ तुम्हारे
रोटी भी
पकवानों सी 
लागी है
जब से गये हो
सुख चुकी है
वो डाली अमराई की
जिसपर हमने प्रेखां डाली
झुलसी पुरवाई भी
सीत सताये
उमस डराये
बदली मोहे सताये
कहि एसा नहो
तुम जब आओ
प्रिया तुम्हारी
सांसे ही बिसराए
मेरी मीठी पाती
सजना ज्यूँ पाओ
पिया परदेश न जाओ
मन कहता है लौट आओ


तारीख: 22.03.2018                                    विजयलक्ष्मी जांगिड़









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