प्रतीक्षा

तनहा मै यहाँ, वहाँ वो दिल अकेला 
रब जाने फिर कब आएगा वो मेला 
खिलेगा कब उपवन, कब महकेगी गलियां 
रसपान करती वो रंगी तितलियाँ 
फिर जाने कब से वो बरसात होगी 
मेरी रूह जाने कब मेरे साथ होगी .

है यादों का बस उनके अब सहारा 
कभी उनके ख़त से चहकना हमारा 
तन्हाई में कभी नम आंख ये है
अश्रु टपकती कभी वो पलक है 
उस पार तरसती उन बांहों का घेरा 
मिलन की आस में इधर दिल ये मेरा .

कभी संग थी वो, आज तस्वीर है 
लीखी कैसी जाने रब ने तकदीर है
खुदा ने जाने क्यों ये कहर ढाया 
चहकते उन्हें भी, न मै रास आया
मगर रवि कब बादलों से रुका है 
आँधियों के आगे क्या पर्वत झुका है .

आएगी घटा कभी फिर उमड़ कर 
बरसेगी जम के इस तपती जमी पर
खिलेंगे उपवन में पुष्प फिर से 
होगा मेल भोंरे का फिर उस कली से 
करूँगा प्रतीक्षा मै उसी मोड़ पर 
खो गयी जहाँ थी वो मुझे छोड़ कर


तारीख: 18.06.2017                                    विष्णु पाल सिंह









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