कल शाम सास और बहू घूमने के लिए चली
अचानक सासु माँ के मुख से ये पंक्ति निकली ॥
भगवान मुझे तो सही समय पर बुलवा लेना
कभी समाज के लिए बोझ मुझको नहीं बनने देना ॥
इतना सुनकर बहू की आँखे अचानक नम हो आई ।
मम्मीजी शंका के बादल कैसे मन में भर लाई ?
बताओ अभी मम्मीजी मैं ऐसा क्या कर जाऊं ?
बुढ़ापे में भी करेंगे सेवा यह विश्वास दिला पाऊँ ?
हनुमान के जैसे छाती चीर नहीं दिखा सकती हूँ ।
लेकिन तुम दोनों बिन जीवन तकदीर नहीं बना सकती हूँ ॥
बेटा बहू तुम्हारे रहेंगे अपने, चाहे जग सारा बदले ।
माँ बाप पुराने वस्त्र नहीं, जिनको जब चाहें उतार चले ॥
तुम दोनों की शीतल छाया से हम वंचित ना रह पाएँ
तुम्हारे अनुभवी आशीर्वचनों को हम संचित कर सुख पाएँ ॥
इतना सुनकर सासु माँ ने बहू को हृदय लगाया ।
उर से फूट पड़ा जो झरना सारा उस और बहाया ॥