सफलताओं के आँगन में

हासिल कर मुकाम,परचम लक्ष्य का लहराना है
ठाना है जिद मन में जिस बात की
झरोंखे से पार निकाल सामने सबके लाना है
सफलताओं के आँगन में मंजिल को नचाना है

शिखर तो छूना ही है ऊँचाइयों की
पर ताड सा नही कि सीधा हो के जाऊँ 
फैला के साखों को शिखर की ओर जाना है
सफलताओं के आँगन में मंजिल को नचाना है 

उडान भरना है ऐसी कि पंख भी ना फढके
कामयाबी की हुंकार जो सबको सुनाना है
सफलताओं के आँगन में मंजिल को नचाना है

छाया है कब से धूंध सा जो राहों पे मेरे
मेहनत की समशीर से उसे मिटाना हैै
सफलताओं के आँगन में मंजिल को नचाना है 

हौसला को कर बुलंद नसीब को देनी है चुनौती
कर्मों की धार से लकीर हाथों की मिटाना है 
सफलताओं के आँगन में मंजिल को नचाना है 


तारीख: 01.07.2017                                    रोहित सिंह









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