महसूस करो तुम भीतर से स्वयं को,
तुम ही हो शिव-शक्ति के सार प्रिये !
स्वयं के भीतर स्वयं से मिलकर,
अब क्या मांगना और क्या देना ?
तुम हो स्वयं सकल ब्रह्मांड प्रिये !
अब हार- जीत का फर्क नहीं कि
मैं या तुम में कौन श्रेष्ठ है,
हमारा तो जीवन ही लगता है
प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार प्रिये!
रुद्र और महाकाली का संगम अनोखा
संकल्प से सिद्धी कैसे करते
यह मंत्र जपते महाकाल प्रिये!
जब से पाया है स्वयं में तुमको
अर्धनारीश्वर तुम मेरी प्राण प्रिये !
हर नर महादेव !