सुन्दर सी इस श्रृष्टि का एक सुन्दर सा कण हूँ मैं भी,
क्यों ना मानू ख़ुद को प्यारा जब प्यार मुझ ही से है सारा।
महक मुझ ही से, चहक मुझ ही से
बात मुझ ही से, साज़ मुझ ही से, हर कण की आवाज़ मुझ ही से।
बरखा की आहट मे लाऊँ , मेघों को मैं संग ले जाऊँ ,
ठंडों की ख़ुश्की मुझ से है , पतझड़ की आहट मुझ से है ,
सर्द मुझ ही से , ग्रीष्म मुझ ही से
मौसम की रफ़्तार मुझ ही से।
बादल पंछी , ध्वनि सुर ताल
सबके साथ रहूं हरदम।
दिशा मेरे आने से उनकी, बिना मेरे उनका ना मोल।
अग्नि की सखी, शत्रु भी मैं ,
जीवन वायु पृथ्वी की मैं ,
इस सारे वायुमण्डल का एक मात्र नियंत्रक हूँ मैं ही।
क्यों ना मानू ख़ुद को प्यारा, जब प्यार मुझ ही से है सारा।
ग्रहों की गति, दिशा मुझ से
तारों की चमक और छमता मुझ से
ब्रह्मांड के हर एक कण का एक अहम् सिरा हूँ मैं भी ,
क्यों ना मानू ख़ुद को प्यारा, जब प्यार मुझ ही से है सारा।
जल मे हूँ मैं , थल मे हूँ मैं
और सारे तारामण्डल मई भी ,
क्यों ना मानू ख़ुद को प्यारा, जब प्यार मुझ ही से है सारा।
मैं जन्म भी हूँ , मृत्यु भी मैं
जब प्रेम करूं जीवन हूँ मैं,
जब द्वेश करूं नाशक हूँ मैं,
आँधी भी मैं , तूफ़ान मुझ से ,
और चेहरे को सहलाती सी वो मधुर सुरम्य अनिल भी मैं।
क्यों ना मानू ख़ुद को प्यारा , ब्रह्माण्ड मुझ ही से है सारा।