" जिंदगी है गजल ,
गजल बंदगी है ,
बड़ी मस्तमौला ,
असल जिंदगी है ।
मिली जो न मंजिल
कभी भी किसी को ,
न जाने उसी से
क्यों दिल्लगी है ।
पाखी की राखी
डाकखाने में बैठी ,
ये कमबख्त पैसा
बड़ा मतलबी है ।
आज जीने को गंगा
मुनासिब नहीं है ,
जमाना है गंदा
बड़ी गंदगी है ।
पहर बीता मगर
रात बीती नहीं है ,
चार दिन की कहानी
तेरी उम्मीद की है ।