तड़प

लग रहा है वो नजारा अभी भी आँखों में है
वो नन्हे पैरों में पायल पहनकर
पूरे घर में छनछनाती घूम रही है
खिलखिला रही है

मुझे साथ खेलने बुला रही है
कह रही है, आओ पापा
मुझे पकड़ के दिखाओ
नहीं पकड़ पाओगे

मैं आपसे तेज दौड़ती हूँ
मैं तो उससे भी ज्यादा उत्साहित हूँ
उसके साथ खेलने के लिए
उसके पीछे दौड़ते, थक जाने के लिए

उसके साथ खिलखिलाने के लिए
मेरी सिर्फ यही ख्वाहिश है
उसे अपने सीने से लगा कर
जी भर के रो लूँ।

पता ही नहीं चला मुझे
किस पल, मेरे दिल की नन्ही सी धड़कन
अचानक बड़ी हो गई
और मुझे, अपने पापा को छोड़कर

अपने नए घर चली गई
यादों में आती है, मुस्कुराहट भर जाती है
पर उससे ज्यादा, रुलाती है, बहोत रुलाती है।
मेरा सबसे बड़ा सपना था, उसका कन्यादान

मुझे लगता था,
अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी पूरी करके
मुझे सुकून मिलेगा
मगर, एक दिन भी रह नहीं पाता हूँ

मिलने की बेचैनी होती है
हर पल चाहत होती है
उसे आँखों के सामने देखने की
उससे बातें करने की

ये बात समझ नहीं आई कभी
बेटी पराई क्यों होती है?
क्यों, वो मुझसे दूर चली गई?
क्यों, पिया के घर, और पापा के घर में इतनी दूरी है?

मेरी सिर्फ यही ख्वाहिश है
उसे अपने सीने से लगा कर
जी भर के रो लूँ।


तारीख: 03.11.2017                                    विवेक सोनी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है