तेरी उम्मीद

मेरे अपने मुझे जीने की दुआ देते हैं,
जब भी बुझता हूँ, मुझे फिर से जला देते हैं।
आंसू बन कर ही सही दिल से निकल जाये तू ,
इसी उम्मीद में वो फिर से रुला देते हैं।

किसी आहट पे न जाने क्यू तुझे ढूंढता हूँ,
अब तो मौसम भी तेरी तरह दगा देते हैं।
पूछ बैठा उन्हें , ये ख़ुशी कहाँ बिकती है,
दोस्त हँसते हुए मयखाने का पता देते हैं।

ख्वाब बनकर ही कभी,मुझ से मिलने आये तू,
जब भी सोता हूँ, तेरे ख्वाब जगा देते हैं।
 


तारीख: 18.06.2017                                    समीर मृणाल









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