तुमसे कहा था

क्या तुम्हे याद है?
मैंने तुमसे कहा था,
की अब हम हमेशा संग होंगे,
फिर कभी जुदा न होंगें ,
अब मंज़िल वही चुनेंगे हम,
जिसकी राहों पे संग चलेंगे हम,

जहाँ झिलमिल सितारे मिलेंगे,
जहाँ को किनारे मिलेंगे,
जहाँ  मनभावन नज़ारे मिलेंगे,
जहाँ हमारे आशियाने मिलेंगे,
मैंने तुमसे कहा था ..

जहां कपकपाती सर्दियाँ होंगी
जहाँ बर्फीली वादियां होंगी,
जहाँ सुबह सूरज की किरणें आकर तुमसे मिलेंगी,
जहाँ सबके चेहरों पे मुस्कानें खिलेंगी ,

जिन राहों पे छलके रंगीनियाँ मिलेंगी,
जिन राहों पे छलके मस्तियाँ मिलेंगी,
जहाँ सुकून होगा आराम होगा,
जहाँ तुम्हारा खिलखिलाना आम होगा,

मैंने तुमसे कहा था ...
पर आज में तनहा हूँ,
हताश हूँ,
तुमसे थोड़ा निराश हूँ,
नाराज़ हूँ,

तुम्हारी जिन बातो को सोच हंस पड़ता था,
आज वाही बातें नमी ले आती है इन आँखों में,
साथ चलना तो दूर,
अब मंजिल भी एक एक नहीं इन जहानों में ,
तुम दो मेरा साथ..
मैंने तुमसे कहा था ..

अरसा हुआ तुम्हारी आवाज़ सुने,
वह खिलखिलाती हंसी याद आती है..
याद करता हूँ तो हर बात याद आती है..

अँधेरी अब हर रात है,
सुनसान है हर राह..
मैं अकेला चल रहा हूँ..
थाम लो यह हाथ मेरा
मैंने तुमसे कहा था। ।


तारीख: 20.06.2017                                    सूरज विजय सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है