देख,
सुंदर प्रज्वलित स्वप्नों को
उनकी शुभ्र विलक्षण कीर्ति को
देख,
जीवन की कटु-कठोर सच्चाई को
हर सुख-दुख को
हर आशा-निराशा को
हर विजय-पराजय को
देख,
उज्ज्वल, पवित्र प्रेम के उदय को
प्रेम के नाश से उपजी विपदा को
और समझ लें कि
स्वप्न भी टूटते है
अरमान भी बिखरते है
फिर भी संभल जाता है मनुष्य
स्वयं को समेट लेता है-बिखरने से
पर बिखरते भी है मनुष्य और टूटते भी
जब उनके अपने टूट जाते है
हताशा और निराशा में डूब जाते है
तब स्वयं टूटता है मनुष्य
और समझे लें कि
टूटना सदा बुरा नहीं होता
क्योंकि संभवतः टूट कर ही
नवनिर्मिण अस्तित्व लेता है
हताशा-निराशा जीवन की कटु-कठोर सच्चाई
कभी-कभी बहुत कुछ जोड़ती है
वो बहुत कुछ दे जाती है
नई उम्मीदों और विश्वासों को
नये स्वप्नों और स॔कल्पों को
और नवीन अनुभवों को
क्योंकि टूटना, बिखरना और हताश होना
सदा बुरा नहीं होता