मेरी उड़ान

मैंने जाना है आज खुद की तासीर को,

अब तो जुनून जागा है मंजिल को पाने का,

अब इसके लिए सारे ज़माने से लड़ पड़ूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


अपने अंदर की कशमकश से उबरा हूँ आज,

अब तो जाना है ख्वाबो को तवजों देना,

और रुखसत-ए –ज़िंदगी तक देता रहूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


इस्तक़बाल करता हूँ अपनी इस सोच का,

आज मुझमें ही मुझे जगाया जिसने,

अब खुद का भले ही हो, पर इस सोच का अंत कभी न करूंगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।

खुद पर खुद ही लगाई उन बंदिशों को,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


अब सोचा है मैंने गैरों के दर क्यूँ जाऊँ,

खुद के मुकद्दर को क्यूँ न आज़माऊँ,

और सोचा है जो वो कर के रहूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


जो बिना माँगे नसीहत देते फिरते हैं,

खुद को ही हाफ़िज़ समझा करूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


लोगों के बीच खुद को समेट देना,

खुद में इन चीजों को ख़त्म करूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


खुद में तहजीब को मारा नहीं है मैंने,

बस अब तो सीखा है थोड़ा बेबाक बनना,

अच्छा है या बुरा पर मैं अब ऐसा ही रहूँगा,

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


दूसरों को देख कर बहुत सीख लिया अब मैंने

बारी अब खुद के तसव्वुर में जीने की है,

अब तो खुद के तजुर्बों की भी कद्र करूँगा, 

अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।
            


तारीख: 10.06.2017                                    अल्फाज़-ए-आशुतोष









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