उम्मीद

दिल को थी उम्मीद यही
की सब हल होगा
आज नहीं तो कल होगा। 

बैठे बैठे ख्यालों में घुमड़ते
विचार  यही बस आते थे
जो होगा बेहतर होगा
यही आवाज़ लगाते थे। 

ऐसा तो नहीं की कुछ नहीं होगा
सफल नहीं तो विफल होगा।

दिल को थी उम्मीद यही
की सब हल होगा
आज नहीं तो कल होगा। 

कभी कभी हंसी भी खुद पर आती थी
संभावनाएं उलझ कहीं जाती थी
भाँती भाँती की तंत्रिकाएं
मुझमें दौड़ लगाती थी। 

राय किसी से लेना
लगता उनको दखल होगा

दिल को थी उम्मीद यही
की सब हल होगा
आज नहीं तो कल होगा। 

फिर भी मेहनत करते रहे
अंजामों की फिक्र छोड़ के
कैसे नहीं तरणी पार होगी
जब इरादा इतना अटल होगा

आखिर मीन भी
उसी पुष्कर में इठलाएगी
जिस पुष्कर में जल होगा।

दिल को थी उम्मीद यही
की सब हल होगा
आज नहीं तो कल होगा।


तारीख: 21.06.2017                                    सूरज विजय सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है