वो सामने है पर खामोश है

वो सामने है
पर खामोश है
खामोश है, इसलिए नही 
कि उसे मुझसे कोई राब्ता नहीं
पर इसलिए कि वो डरती है
डरती है इस बात से
कि मुझे इस बात का पता नहीं
मुझे ये पता नहीं कि वो मुझे
मुझसे ज्यादा प्यार करती है
फिर भी उसके लिए पागल हूँ
और उसके इकरार के बाद
ये पागलपन किस हद तक बढ़ जाएगा
ये वो जानती है इसलिए
वो डरती है ।

वो चाहती है मैं अंजान रहूँ
इस बात से कि वो भी वही 
चाहती है जो मैं चाहता हूँ
शायद इसी बास्ते वो खामोश है
पर वो नही छिपा सकती 
उस इश्क़ को जो मेरे लिए
उसके दिल में है
वो नहीं छिपा सकती वो अक्स
जो उसकी आँखों में चमकता है
वो ये इश्क़ और अक्स सरेआम 
करना चाहती है पर
वो डरती है ।


वो पढ़ती है मुझे 
वो पढ़ती है मेरा दर्द
बयां नहीं करती ये सब
पर देखा है मैंने उसकी आँखों में
वो दर्द जो मेरे दर्द से बहुत बड़ा है 
वो समझती है मैं इससे अन्जान हूँ
मैं उसके मन को समझता नहीं
शायद ये उसकी ग़लतफ़हमी है
उसको ये खबर ही नहीं कि 
उसकी एक एक सांस को पढ़ा है मैंने
अपने हर लफ्ज़ में उसको गढ़ा है मैंने
वो चाहती है मैं लिखूं
उसका नाम अपनी ग़ज़लों में पर
वो डरती है ।

वो चाहती है 
वो चाहती है कि मेरा नाम लिखे
उसकी मेहंदी में
वो चाहती है साथ मेरा हो
जन्मों जन्मों का पर
डरती है उस समाज से 
जिसकी परवाह वो करती है पर
उसकी जिसको परवाह नहीं
शायद इसलिए वो खामोश है 
वो चाहती है इस ख़ामोशी को तोडना पर
वो डरती है ।


तारीख: 02.08.2019                                    ऋषभ शर्मा रिशु









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