ये आँख भर आती है

तिरंगे के सम्मान में, 
देश के स्वाभिमान पर, 
अपना सर्वस्व लुटाने को, 
जाँबाजों की फौज खड़ी नजर जब आती है,
ये आँख यूँ ही भर आती है।

रिश्तों को सहेजने और संवारने में,
इक उम्र गुजर जाती है । 
खुली मुट्ठी तो, खाली हथेली नजर जब आती है, 
ये आँख यूँ ही भर आती है।

हौंसलो की उड़ान भर, आसमां छूने का है मन,
विश्वास का आँचल थामे, बिंदिया माथे पर सजती है।
बहरूपियों के हाथो, पग-पग छली जब जाती है,
ये आँख यूँ ही भर आती है।

ठिठुरते पैरों से, लू के थपेड़ो से, रिसते बसेरों में, 
हर पल जीवन से नयी जंग लड़ी जाती है।
कहीं सुविधाओं के महलो में, 
उम्मीदे दम तोड़ती नजर जब आती है,
ये आँख यूँ ही भर आती है।

अकल्पनीय था जीवन, बिन जिनकी छत्र-छाया तले, 
पलक झपकते ही न जाने कहाँ खो गये। 
याद में उनकी आँखे छलक-छलक जाती है, 
ये आँख फिर रूकने न पाती है। 


तारीख: 15.06.2017                                    भारती जैन









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