ले चल मुझे भी ऐे ज़िन्दगी ;
जहाँ तू जा रही है।
शायद तू समझ ले मुझे;
वरना मेरी मौत हाज़िर है,
जो मुझे बुला रही है।
कभी सोच तो जरा मेरा यहाँ क्या काम है
साथ ले चल मुझे; गिरी तो हर जगह बदनाम है।
हक़ जमा रहे हैं मुझपर वो भी लोग;
जो मेरे लिए आजतक गुमनाम थे।।
तू भी देख मेरी ज़िन्दगी जो मेरे लिये सिर्फ सज़ा रही है।
ले चल मुझे भी ए ज़िन्दगी;
जहाँ तू जा रही है।।
मेरे लिये बचा ही क्या है यहाँ;
हर कोई मेरे मरने का इंतज़ार कर रहा है|
जी कर करूँगा भी क्या।
जखम ज़िन्दगी का कोई नही भर रहा है।
तमाशबीन हो गए है लोग;
और उन्ही की ज़िन्दगी गुज़रे जा रही है।
ले चल मुझे भी ए ज़िन्दगी;
जहाँ तू जा रही है।