जिंदगी का सच भी कितना अजीब है
जरूरते पूरी करके भी भटकना नसीब है
बचपन छूडा लिया जवानी का लालच देके
अब जवानी भी छूडा ले अमीरी का लालच देके
सोचने बैठूँ फुरसत से तो जीना भी दुष्वार लगता है
खो जाऊँ खुद मे तो सूना संसार लगता है
बडे मुश्किल से तो कमाया था एक हूनर की कमायी
पर भूल गया था की उस्से भी कुछ नही होना
हुनर तो खुद भटकता रहा प्यासा
मिला भी पीने को तो जहर मिला हुआ
बेचारा पीता तो मरता ना पीता तो मरता
कितनी भी करलो कोशिशें यही नसीब है
जिंदगी का सच भी कितना अजीब है
रातों का चैन और दिन का सुकून गॅवाया
रोऊँ ना कभी तकदीर को लेके इसलिए हूनर कमाया
हूनर भी बेचारा किस्मत बिना गरीब है
जिंदगी का सच भी कितना अजीब है
पर मलाल भी तुझसे क्या करूँ जिंदगी
कुछ को तो ये भी नसीब नही है
अमीर हो के भी बेचारे पल पल गरीब है
जिंदगी का सच भी कितना अजीब है ॥॥