चक्र का रहस्य 

चक्र यानि पहिया या छल्ला....! इसे हम और कई नामों से जानते हैं --- परिधि, वलय, बाला, बाली इत्यादि | इसी को हम थोथे अर्थों में गोला, गोलाकार, पिंड, पिंडाकार, अण्ड, अंडाकार आदि शब्द लेकर समझ लेते हैं | 


वैसे इसका पारिवारिक महत्त्व कम नहीं हैं | हाथों में चूड़ी, कानों में बाली,अँगुलियों में छल्ला, पैरों में गोड़ाईं, गर्दन में हसली, कलाइयों में पहुँची व बाला, बाँहों में बाजुबंध, बालों में जूड़ा, गले में हार व माला, माथे पर बिंदिया या माथे पर रोली या गालों पर काजल का गोल टिका |

ये सभी स्त्रियों के आवश्यक श्रॄंगार साधन व गहने- गुड़ियाँ हैं....और उस पर सामाजिक महत्त्व भी कुछ कम नहीं है | गोल गेंद, फुटबॉल, कँचा, आटे की लोई, गोल रोटी, गोल तवा, गोल चूल्हा, गोल बेलन, गोल कुईया, गोल चौकी, गोल चाक, गोल चबूतरा, गोल पहिया, गोल मूसल, गोल ओखली, गोल टोपी, गोल गुंबद, गोल कड़ाई, गोल तसला आदि |


लेकिन इसका सबसे अधिक महत्त्व अगर है तो विज्ञान शास्त्र में है | वह ऐसे कि......

मनुष्य जब धरती पर अवतरित हुआ तो वह अपने आप को धरती पर पाया | परंतु उसे यह महसूस नहीं हुआ कि जिस पर वह खड़ा है... वह गोल या गोलाकार है | परंतु जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो उसे गोल ही गोल नज़र आए... और एक नहीं दो-दो वस्तुएँ उसे गोल रूप में नज़र आईं -- एक सूरज तो दूसरा चाँद | और उसे उस समय जो नज़र आए, महा आश्चर्य कि वे आज भी जस के तस हैं |

 
फिर भी वह यह भाप नहीं पाया कि जिस पर वह खड़ा है, वह भी गोल या गोलाकार रूप में ही है | यह अलग बात है कि हज़ारों वर्षों बाद उसे यह पता चला कि धरती भी गोल है, अंडाकार है या संतरे के जैसी है |अब मनुष्य ने "गोल" का रहस्य कुछ हद तक समझ लिया था तो गोल को बनाना, गोल को बिगाड़ना और गोल को काटना-छाँटना भी सीख लिया था | और इन्हीं पिंडाकार सूरज और चाँद से प्रेरणा लेकर मनुष्य ने वलय यानि कि चक्र का निर्माण किया और अपने दुश्कर जीवन को कुछ सरल बनाने में सफल हुआ |


इतिहास गवाह है कि मनुष्य ने इस गोल का प्रयोग कर अपने जीवन जीने की विषमता को कितना सरल बनाया | और विभिन्न तरह की वस्तुएँ बनाकर अपने जीवन के दुर्गम राहों को सुगम बनाकर आगे की ओर बढ़ता रहा  |सबसे पहले तो वह कठोर व मज़बूत काष्ठ को काटकर चक्के का आकार दिया और फिर धीरे-धीरे वही बन गया ----
चक्र यानि कि पहिया !


अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि इन पहियों का किन-किन जगहों पर उसने उपयोग किया | पहिया .... ! हाँ ....., यही पहिया | बैलगाड़ी से लेकर साइकिल, मोटर साइकिल, कार, जीप, रेल यहाँ तक कि हवाई जहाज को भी पहिए की ज़रूरत पड़ी | आज हम मीलों की दूरी सेकेंडों में नाप सके तो इसी पहिए की बदौलत |पहिया.... , मानव कृत वस्तु है, पर है तो प्रकृत से ही प्रेरित | 


ऐसा नहीं है कि यह चक्र पहिए तक ही सीमित रहा | यह चक्र संसार/ब्रह्मांड में चारों ओर भी/ही छाए रहा ----जीवन चक्र, ऑक्सीज़न चक्र, नाइट्रोज़न चक्र, जल चक्र, ऋतु चक्र, काल चक्र, दैनिक चक्र, ग्रह गमन चक्र आदि |अर्थात् हम पाते हैं कि अगर दुनिया की ६०% वस्तुएँ वलयकार या गोलाकार हैं तो इस ब्रह्मांड की तो ९९% वस्तुएँ गोलाकार या पिंड रूप में हैं तो .........


क्या हम इस पर एक बार विचार नहीं कर सकते कि आख़िरकार सभी आकाशीय पिंड गोल या गोलाकार क्यूँ  हैं !!?
आपने कभी ग़ौर किया है कि ब्रह्माण्ड की सारी वस्तुएँ गोल क्यूँ  हैं -- सूरज, चाँद, तारे, ग्रह , ....... ? मैंने तो किया है, और वह यह कि इस गोल शब्द में ही ब्रह्माण्ड और इससे जुड़ी सभी वस्तुओं की उत्पत्ति का रहस्य छुपा है | 


चूँकि मुझे पूरा विश्वास है कि गोल एक रहस्यमयी शब्द है ! फिर इस गोल का पोल तो खोला जाना ही चाहिए |सो मैं समस्त वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ कि यह गोल शब्द बहुत मायने रखता है | इस पर ध्यान देने और चिंतन करने की जरूरत है | शायद इसमें ही सारे रहस्य और इससे ही सारे सूत्र जुड़े होंसम्भवत: इस धरती व जीवों की उत्पत्ति की युक्ति यहाँ उन्हें मिल जाए |


तारीख: 18.06.2017                                    दिनेश एल० जैहिंद









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