मैं हारा हूँ

आज मैं हारा हूँ। हाँ ये सच है कि मैं हारा हूँ, 

आज किसी को मेरी खबर नहीं, किसी को मेरा बोध नहीं। मैं किसी की सोच में नहीं बस एक बेबस बेसहारा हूँ, क्योंकि मैं हारा हूँ।

आज सुबह उठ पाने में तकलीफ होती है क्योंकि उठने की वजह नहीं है कुछ, आज घर से जब फ़ोन आता है तो प्यार कम माँ की हमदर्दी और पिता के ताने ज्यादा सुनाई देते हैं।

घर बार, रिश्तेदारों और दोस्तों से तौला जाता है ऐसा सब कहते हैं कि वो कामयाब हैं। पर तकलीफ उनके चौबारों में भी है। सांझ सबेरे वो भी अपनी तकलीफ को शराब और सुट्टे में दबाए घूमते हैं लेकिन हमें उनके जैसा होने को कहा जाता है। बतलाया जाता है कि ‘वो करो तो कुछ बनोगे’ वरना बस जीवन में किसी तरफ़ धकेले जाओगे। जी में आता है कि कहूँ, “जैसे आप इस वक़्त धकेल रहे हैं” आज सबकी नज़र में शायद बस एक बेचारा हूँ, क्यूंकि मैं हारा हूँ। 

आजकल दोस्त भी नज़रे नहीं मिलाते, अपने घर नहीं बुलाते। हम शायद interesting नहीं। लेकिन चुप भी नहीं रहते, पास आकर ताने मार जातें हैं। अपनी गाड़ी और पैसों के किस्से सुनाते हैं। 

Main hara hoon

‘हम’ जो उनके लिए आज से कुछ साल पहले सब कुछ थे, एक समय था जब हम थे जोशीले और वो थे नए। जब उन्हें दोस्तों की ज़रूरत थी, जब उनसे कोई बात नहीं करता था, जब उनके पास कुछ नहीं था। हमने साथ दिया, सदभावना दी, सीख दी, हल दिए और छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात बतलाई। आज उनके तेवर अलग हैं, आज उनके दोस्त ज्यादा हैं और हम कानी ऊँगली के नाख़ून में गिने जाते हैं, हम दोस्तों की गिनती में सबसे पीछे आते हैं। सच है कि मैं सिर्फ एक लाचारा हूँ क्योंकी मैं हारा हूँ। बस मैं हारा हूँ।

देखा होगा ज़माने ने जब एडिसन ने एक हज़ार गलतियों से बल्ब बनाया, देखा होगा सबने जब बम्बई के कूड़ेदानों में से बच्चन निकलकर आया, सुना होगा सबने जब गहरी गुफ़ा में खाक छांटते वक़्त अल्लादिन को जिन्न मिला। फिर भी कोई मानता कि ऐसा हमारे साथ भी हो सकता है, मानते हैं कि ऐसा सिर्फ बड़े लोगों के साथ होता है, किस्मत वालों के साथ होता है। ऐ मन रुक जा, बस ठहर जा। चुप रह, आवाज़ न लगा तू, तू अकेला है। अभी तो बस रात काली है, और हम एक राहगीर जिनके साथ बड़े शहर ने खेली मिचौली है। गुम ना होना इस भीड़ में, रुकना, संभालना, डरना नहीं, बस साँसे ले, वक्ष्थल चौड़े कर, हिम्मत जुटा, दो कदम पीछे ले। फिर ज़ोर से प्रहार कर इस आसमान पर देखूंगा जब भागीरथ की सुनी तो मेरी क्यों नहीं सुनेगा भोलेनाथ। चेहरे की धुल साफ़ कर, आंसू पोछ और फिर चल आगे और जी भरकर फिर से कर मंथन इस समुद्र का। चीख चीख कर कह दे, “मुझे कामधेनु चाहिए”, अवश्य सुनेगा कोई, क्योंकि तू अभी सिर्फ हारा है, लेकिन सच तो ये है कि अन्दर से अब भी तू एक सितारा है।

याद रख सब कुछ तो बदलेगा, कभी तो “बुरी किस्मत” को भी तुझे अलविदा कहना पड़ेगा। कभी तो वो जाएगी ये कहते हुए, “एक आदमी से बोर हो गयीं हूँ, कुछ नया try करुँगी” तब तू उस दिन खुश होना, उस दिन तू जश्न मनाना, उस दिन खूब नाचना, क्योंकि वो जीत तेरी होगी, क्योंकि उस दिन तू उसका पूरा रस उठा सकेगा। क्योंकि आज तू हारा है।

याद रख ये जो लोग हैं, झूठे है। फेसबुक के पोस्ट से लेकर पॉलिटिक्स की बकवास तक सब झूठ का पर्दा है इनका। बस तेरे साथ हैं क्योंकि इनकी ज़रूरत है तू। जब स्वार्थ नहीं उस दिन तेरा अर्थ नहीं। पर जिस दिन तूने आसमानी करतब दिखाया, महंगे जूते पहने, शोहरत और ताकत को अपने दायें और बाएं जेब में डाल कर घुमा, उस दिन ये तेरे पास आएंगे। उस दिन ये तुझसे हाँथ मिलाएंगे, उस दिन ये तेरी तारीफों के झूठे पुल बांधेंगे। अपने आपको तेरा दोस्त, साथी, यार और हमजोली बतलाएंगे। ऐसे लोगों की दोस्ती या प्यार से भली तवायफ़ की एक शाम होगी। ऐसे में तू उनका बनने की कोशिश न करना, उनके जैसा बनने की कोशिश न करना, उनके झूठे रिश्तों में बिक न जाना बस अपने सपनों से दोस्ती करना। अपने सपनों उनका साथ न छोड़ना, क्योंकि भले ही आज तू हारा है, पर अपने सपनों का तू एकतारा है।

बस आज तू हारा है। 


तारीख: 07.06.2017                                    प्रिंस तिवारी









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