आईना मेरी किस्मत से
तो बेहतर है
वो किस्मत में तो नही
आईने से ही आँखों में नजर आते है
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नही जरा सा इल्म
तुझे मेरा खुद से रूखसत का
भरी महफिल में बेवफा
मुझसे कह नही पाती
गर तुझे होता अदांजा
मेरे दर्द का जालिम
बिछुड कर एक पल भी
तू मुझसे रह नही पाती
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हम इश्क को
तेरी इबादत समझते रहे! खुदा
वो बेवफा नही बस
इश्क को खेल समझ बैठे है
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ये राग-ए-दर्द है नांदा
तुम क्या सुन पाओगे
जो रूबरू हो गये हमसे
मोम से पिघल जाओगे