क्या कहूँ

 

नज़्म पढूँ , ग़ज़ल पढूँ या इश्क़ के अश'आर कहूँ
या रोज़ मुल्क में चल रहे हालात ज़ार ज़ार कहूँ


दिल को चैन दें सुकूँ दें , जज़्बात ऐसे कुछ ही हैं
ताली वाला शेर पढूँ या सिसकी वाली बात कहूँ
 


तारीख: 19.09.2019                                    प्रशान्त बेबाऱ









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