मैं पत्ता तुम बयार पिया

मैं पत्ता तुम बयार पिया जिस ओर बहो मैं संग बहूँगी
थामा है हाथ तो साथ पिया जिस ओर चलो मैं संग चलूँगी

हो तपिश सूरज की या हो चांदनी की शीतलता
साया हूँ मैं तोहार पिया जिस ढंग रहोगे उस ढंग रहूँगी

इन्द्रधनुष या बदरंगी जीवन के तुम हो रचयिता
मैं पानी तुम रंग पिया जिस रंग रंगोगे  उस रंग मिलूँगी

धन दौलत सब मोह यहाँ क्यूँ बनूँ मैं इसकी संचयिता
बस आदर और प्रेम पिया इसमें ही मैं संलिप्त रहूँगी


तारीख: 15.10.2017                                    विभा नरसिम्हन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है