अब तुम, क्या बताओगे, मुझे, यंहा, चलने  का रास्ता

अब तुम, क्या बताओगे, मुझे, यंहा चलने  का रास्ता ,
 कि ये मेरी उम्र, ये तजर्बा देखो, तुम्हे खुदा का वास्ता ,
 
 अभी तो येः जान बाकि हैं, मुझ में,और चल रहा हूँ मैं,
 रहना पड़े जो तेरे भरोसे मुझे,नादाँ यूँ खुदा-न-खास्ता ,
 
 बेहतर हो, जो कि, बंद कमरे में, हम कर ही लें फैसला,
 कि सुने ना, बस ये, सारा जहाँ मेरी ये ग़मगीन दास्ताँ ,
 
 इक बार जो मैंने, तै कर ही लिया ,कुछ,खुद से तो सुन,
 कभी मुड़ के ना देखूंगा, निकल, बाहर दिल से बरास्ता,
 
 ताजिंदगी की ना मैंने, किसी की किसी कीमत,ग़लामी,
 खुदाया, मैं ना तो तेरा मुलजिम हूँ और ना ही गुमाश्ता,
 
 अब तुम, क्या, बताओगे, मुझे, यंहा, चलने  का रास्ता ,
 कि ये ,मेरी उम्र, ये ,तजर्बा देखो, तुम्हे खुदा का वास्ता  !!


तारीख: 17.06.2017                                    राज भंडारी









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