दोस्ती का यकीन

ऐ दोस्त मुझ पर है यकीन, तूने ये कहा था के नहीं था।
आंखो से तेरी तब अश्को का वो सैलाब, बहा था के नहीं था। 
              
जब चले गए थे, सब अपने, तेरे अकेला तुझ को छोड़ के,
उस वक़्त भी, सिर्फ मैं ही, साथ तेरे, खड़ा रहा था के नहीं था।

जो, गुजर गया, वो वक़्त, दोस्त तू अब, क्यों उसे, भूल रहा है,
ताउम्र, हमने, मिल के, हर,  दुःख दर्द, सहा था, के नहीं था।

जरा याद कर, वोः वक़्त जब कि बिखरने को था, तू ऐ दोस्त,
कि  थामने  को तेरा हाथ तब भी, मैं वहाँ था के नहीं था।

कोई  फ़िक्र नहीं के, चला है तू ये सफर, बीच में ही छोड़ के,
बस इतना तो बता दे, के मैंने किया कोई, गुनाह तो नहीं था।

ऐ  दोस्त मुझ पर है यकीन तूने ये कहा था के नहीं था,
आंखो से तेरी तब अश्को का वो सैलाब, बहा था के नहीं था।।  


तारीख: 19.06.2017                                    राज भंडारी









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