गुनगुनाएं आप तो नगमें बना सकता हूँ मैं

गुनगुनाएं आप तो नगमें बना सकता हूँ मैं ।
साजे दिल पर दास्ता-ने-ग़म सुना सकता हूँ मैं ।।

ये करिश्मा इश्क़ वालो भी दिखा सकता हूँ मैं ।
उनको दरिया-ए-मोहब्बत मे डूबा सकता हूँ मैं ।।

आसमा दर आसमा तेरे नशी हो जायेंगे ।
तुम ज़रा सा लब हिला दो मुस्कुरा सकता हूँ मै ।।

लब तुम्हारे जामो मीना की तरह मामूर हैं ।
तुम पिलाओ तो ज़माने को पिला सकता हूँ मै ।।

अब कोई दे भी तसल्ली तो नहीं मंजूर हैं ।
उनसे मिलने की तमन्ना क्या भुला सकता हूँ मै ।।


तारीख: 17.06.2017                                    पीयूष शर्मा आशिक









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है