मरीज-ए-इश्क़ को अब कोई दवा न लगे।
तुम्हारे बिन कोई सुबह, मुझे सुबह न लगे।
तेरे इश्क़ में इस कदर दीवाना है ये दिल,
तेरी दी हुई कोई सजा, इसे सजा न लगे।
बहुत तड़प चुका हूँ आतिश-ए-हिज्र में,
अब इस आग को और हवा न लगे।
यूँ तो अक्सर कह देता हूँ उसे मैं बुरा-भला।
खुदा इतना करना, उसे मेरी कोई बद्दुआ न लगे।