अंजामें मोहब्बत से थी वाकिफ यूं तो शह मेरी
पर ईश्क का छौंक उसने, हुस्ने उबाल पर डाला
लाख समझाया था मैंने इस निगोङी पायल को
हाय, हर कुसूर को जमाने ने मेरी चाल पर डाला
कैसी खुमारी अता कर दी,पलकें भी नहीं उठती
अजी ये कैसा बोझ ईश्क के नौनिहाल पर डाला
सदियों से संभाले बैठी थी कलीयों सी नज़ाकत
उस जूल्मी ने अर्शे-मोहब्बत में, पामाल कर डाला
सूखी नदी को समंदर ने बख्शकर पनाहे-आगोश
मेरे आश्ना ने मेरे आलाप को इक़बाल कर डाला
इक पर्दादारी का गुमां ही तो था खैरख्वाह को
तेरी इक निगाह ने उससे भी कंगाल कर डाला