साधू-संतो से नीचे भगवान् हो गए
मंदिरों से ऊँचे मकान हो गए ।
पुरानी पीढ़िया थीं श्रवण कुमार
आज के बच्चे शाहरुख़ खान हो गए ।
लहज़ा था कभी संस्कृति जहां की
लोग वहां के बदजुबान हो गए ।
छेड़ते है गली से गुजरती बेटियों को
बूढ़े भी अब हैवान हो गए ।
मर मिटे जो कभी प्रजा की रक्षा को
नेता हमारे बेईमान हो गए ।
हमारी पोशाक थी पहचान हमारी
बेशर्मी से गढ़े वो परिधान हो गए ।