बस इक दुआ कबूल हो जाए

बस इक दुआ कबूल हो जाए
फ़िर चाहे सब फिजूल हो जाए ।

जो ढा रहे हैं ज़ुल्म मजलूमों पर
ज़िंदगी उन की बबूल हो जाए ।

मदद न सही ,तो मक्कारी भी नहीं
अमीरों का बस ये उसूल हो जाए।

भटक रहे हैं लोग बदहवास जहां में
या खुदा और एक रसूल हो जाए

मूंद लूँ मैं आँखें इत्मीनान के साथ
गर मेरी ये इल्तिज़ा कबूल हो जाए


तारीख: 01.11.2019                                    अजय प्रसाद









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