जलते बदन के दाग़ से हो मजबूर चले हम
चलो कि इस शहर से, कहीं दूर चलें हम
चैन-ओ-अम्न के सब रास्ते क्या बंद हो गए
इक मज़हब के वास्ते, हो काफ़ूर चले हम
आग से ही आग की लपटें बुझाने के लिए
यमुना के बहते दरिया से कहीं दूर चले हम
सड़क पे ख़ून देखकर कुछ मजबूर हो गए
उन ज़बानों के ज़हरीले नशे में चूर चले हम
पत्थरों के सामने जब ज़ोर लबों का न चला
तो इस जम्हूरियत से रूठ कर हुज़ूर चले हम