गजलों को मेरी तू तहजीब न सीखा
मतला,मकता, काफ़िया, रदीफ न सीखा ।
कितनी बार गिराया है मात्रा बहर के वास्ते
कैसे लिखते हैं दीवान ये अदीब,न सीखा ।
देख ले शायरी में शायरों का हाल क्या है
किस कदर दौलत से है गरीब न सीखा ।
महफ़िलें,मुशायरें,रिसाले मुबारक हो तुझे
मशहूर होने की कोई तरक़ीब न सीखा ।
गुजर जाऊँगा गुमनाम, तेरा क्या जाता है
शायरी मेरी है कितनी बद्तमीज़ न सीखा ।
हक़ीक़त भी हक़दार है सुखनवरी में अब
ज़िक्रे हुस्नोईशक़,आशिको रकीब न सीखा ।
मेरी आज़ाद गज़लों पे तंज करने वालों
मुझे कैसे करनी खुद पे तन्कीद न सीखा ।