इस लम्बे सफर में साथ तुम्हारे कोई और भी था

इस लम्बे सफर में साथ तुम्हारे कोई और भी था
हर ठोकर पर सम्भालने  वाला कोई और भी था

कितनी  ही  बरसातों  ने कोशिशें की  डराने की  
सर पर आसमान  उठाने वाला कोई और भी था

हर मोड़ पे कोई न कोई छोड़ कर जाता ही रहा
दूर मंज़िल तलक निभाने वाला कोई और भी था

जिसे भी अपना कहा,सबने ही बेगाना कर दिया
नए  रिश्तों को  संवारने  वाला  कोई और भी था
 
कुछ तो खाली रह गया था तुम्हारे खुद के होने में
तुम्हें  खुद  से ही  मिलाने वाला कोई  और भी था


तारीख: 01.11.2019                                    सलिल सरोज









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है