शक़ बेशक़ सही था, बन्दा हवस में गिरफ्तार था

ये गज़ल औरतो के साथ आये दिन होते छेड़छाड़ की घटनाओं पर है 


शक़ बेशक़ सही था, बन्दा हवस में गिरफ्तार था
ना ज़मीर, ना दस्तर, कुछ ना अब सरताज था

हरकत से उसकी, पूरा देश बदनाम था
अपना ही घर जला दिया, ऐसा वो चिराग था

कुछ तो देखकर ये, और दूर भाग गए
इतना भी ज़रूरी क्या घर में काम था

वो चिड़िया क्यों अब बादलो को छुएगी
शिकारियों से भरा जब आसमानी जंजाल था

ख़ोये हुये थे, मगर चल रहे थे
रुक जाते तो खो जाते

जंगलो में था अँधेरा बहोत
डर जाते तो कहाँ जाते

सँभाल कर रख रहे थे अपना हर कदम
गिर जाते तो संभल जाते

सफर इंतेहा हुआ, रात के दौर में
सुबह को रुक जाते, भीड़ में फँस जाते
 


तारीख: 16.07.2017                                    अंकित अग्रवाल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है