वो कम दिक्खे है लेकिन उस में बात बहुत है

वो कम दिक्खे है लेकिन उस में बात बहुत है
चाँद के  जलवे बिखेरने को इक रात बहुत है 1

हम क्या ना लुटा बैठेंगे तुम्हारी मुलाक़ात को
मुझे लूटने को  तेरी निगाहों की मात बहुत है 2

चलो नहीं छेड़ेंगे तुम्हें  हम आइन्दा  कभी भी
पर साँप के डसने को उस की  जात बहुत है 3

कैसे और कब बदलेगा यह ख़ौफ़ ज़दा मंज़र
यह मत पूछ,पर तेरी छोटी शुरुआत बहुत है 4

घर में हो तो बचे हुए हो ,यह ग़लतफ़हमी है
जान लेनी  हो तो अपनों की ही घात बहुत है 5

मजहब को क्या करना है मंदिर -मस्जिद से
फकीरों के भेष में दरिंदों की जमात बहुत है 6

इक ही कोशिश पर साँसें जब उखड़ने लगीं  
नेताजी कहते हैं यहाँ तो मुआमलात बहुत हैं 7

बहुत ही रंगीन दिखता है टी वी अखबारों में
वरना इस मुल्क की नाज़ुक हालात बहुत है  8

क्या पता कहाँ पहुँचेंगी मेरी ग़ज़लें बाज़ार में  
पर सच लिखने को कलम में दावात बहुत है 9


तारीख: 01.11.2019                                    सलिल सरोज









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