अचानक बाज़ार मे पहुंचते ही-चचा रामखेलावन ने टोका- "अरे बेटा,जिम्मे कोनो काम नही है क्या?जब देखो तब घूमते रहते हो,जाओ कोनो काम धाम कर लो।"
पल भर के लिए ऐसा लगा की किसी ने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो,,पर अगले ही पल कुछ याद आया और चेहरे पे मुस्कुराहट तैर गयी।
मैंने दांत निकाल कर चचा से कहा- चचा!आपने राहुल सांकृत्यायन का नाम सुना है?बहुत बड़े दार्शनिक थे।उन्होंने तो घूमने पर किताब लिख दिया था और आप हमे लपेट रहे हो घूमने के लिए डाँट पिला रहे हो।
चचा को कुछ समझ मे नही आया।उन्होंने कहा की- "अबे,क्या बड़बड़ किये जा रहे हो।"
मैंने सर पीट लिया कि कहाँ भैंस के आगे बीन बज़ा रहा हूँ। तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली और मैंने चचा से कहा-चचा,तुम क्या जानो घूमना क्या होता है?कितना खर्च होता है जानते हो??या खाली ताने देना आता है??
चचा मेरा मुँह ताक रहे थे।
मैंने बोलना जारी रखा- "हमारे देश के प्रधानमंत्रियों को देख लो।पिछली सरकार के प्रधानमन्त्री ने तो घूमने मे 7 अरब खर्च कर दिए।"
चचा का मुँह खुला रह गया- रे क्या कह रहा है? ऐसा कैसे हो सकता है,वो आदमी गाय था गाय,वो नही घूम सकता""चाचा बोले ।
मैंने कहा - "ऐसा ही हुआ है और अबकी वाले प्रधानमन्त्री जी तो एक साल मे 78 करोड़ खर्च कर दिए घूमने में।"
तभी चचा बोले- हां भाई मंत्री लोग तो घूमते और घूमाते रहते हैं।
तब मैंने बोला- कुछ समझ मे आया घूमने का मतलब??यूं ही किसी को घूमने के लिए ताने ना मारा करो।घूमना बहुत बड़ी चीज़ है। एक कला है ,सबको नही आती। तभी तो एक महान शायर कह गए है-
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल,ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगानी गर मिली तो,नौजवानी फिर कहाँ।