सफ़र के हमसफ़र

जोड़ी का हर जगह महत्व है फिर वो चाहे मोज़े की जोड़ी हो, जूते की जोड़ी हो, संगीतकार की जोड़ी हो, क्रिकेट में ओपनिंग बैट्समैन की जोड़ी हो या फिर कोई और जोड़ी। कुछ कांड केवल जोड़ियों में ही संभव है। कुछ जोड़िया बेजोड़ होती है, तो कुछ जोड़िया जोड़तोड़ या गठजोड़ के गर्भ से उपजी होती है जैसे राजनैतिक जोड़िया। 

 बाकि सब तरह की जोड़ियां तो समय-समय पर फुटेज और दिमाग  खाती रहती है पर कुछ जोड़िया ऐसी भी  होती है जिनके लाइमलाइट में आने से पहले ही उनकी किस्मत का बल्ब फ्यूज हो जाता है और उनका "टाइम-स्लॉट" यूज़ होने से रह जाता है।

एक ऐसी ही जोड़ी है ,किसी भी बस के ड्राईवर और कंडक्टर की। हर बस में इस जोड़ी का मेल अवश्यम्भावी होता है इसलिए इनका तालमेल भी बहुत ज़रूरी होता है। ड्राईवर और कंडक्टर के बिना बस "बेबस" होती है। एक बस के लिए किसी ड्राईवर और कंडक्टर का वही महत्व होता है जो सरकार के लिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का होता है। वैसे बस हो या सरकार, भगवान भरोसे ज़्यादा स्मूथ और अच्छे एवरेज से चलती है। बस चाहे निजी हो या सरकारी लेकिन वो चलती हमेशा से ड्राईवर और कंडक्टर के "निजी तौर-तरीको" से ही है। ड्राईवर हॉर्न बजाता है , कंडक्टर सीटी बजाता है बस केवल यात्री ही इनकी हरकतों पर ताली नहीं बजाते है। कहते है, जोड़िया ऊपर से बनकर आती है लेकिन ये जोड़ी ऐसी है जो अगर अपना काम सही से ना करे तो आपको ऊपर  भी पहुँचा सकती है।

जैसे कुछ लोगो की त्वचा से उसकी उम्र का पता ही नहीं चलता वैसे ही बस में घुसने के बाद "आपकी यात्रा मंगलमय हो" जैसे सुवाक्य पढ़ने के बाद ड्राईवर और कंडक्टर के स्वभाव का पता ही नहीं चलता। बस मे चढ़ने के बाद यात्री अपने सामान की नहीं बल्कि सम्मान की भी स्वयं ज़िम्मेदार होती है।

अपने हाथ में स्टेरिंग और गियर लिए ड्राईवर, यात्रियों के भाग्य और अपने ड्राइविंग कौशल से सभी यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाता है। ड्राईवर बस को अपनी हथेलियो पर रखता और उतने समय तक यात्री भी अपनी जान वहीं पर मतलब हथेली पर  रखते है। 

जैसे जंगल का राजा शेर को माना जाता है वैसे ही सड़क का राजा बस का ड्राईवर होता है जो पूरी सड़क पर "वैध-अतिक्रमण" करते हुए बीच में चलता है और उसके इर्द-गिर्द बाकि वाहन उसकीे शरणागति लेते हुए चलते है। जिस प्रकार शेर के दहाड़ने से दूसरे सारे जानवर डर और घबराकर इधर-उधर भाग जाते है उसी प्रकार बस डाइवर के भयंकर "हॉर्न-नाद" से दूसरे वाहन चालक घबराकर बस को साइड दे देते है। बस ड्राईवर ब्रेक भी ऐसे लगाता है जैसे किसीे इमरजेंसी घटना के बाद आनन-फानन में प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई हो। 

किसी बस-स्टाप पर यात्रियों के उतरने पर ड्राईवर, यात्रियो को देखकर ऐसा "फेशियल एक्सप्रेशन" देता है मानो वो बस चलाकर यात्रियों को अपने गंतव्य स्थान तक नहीं लाया हो बल्कि विदेश मंत्रालय के आदेश पर दूसरे देश से जान बचा उनको एयरलिफ्ट करवाकर लाया हो। बस ड्राईवर ट्रैफिक रूल्स का  केवल पालन ही नहीं करते है बल्कि "लालन-पालन" दोनों करते  है। ड्राईवर की सीट के ऊपर लिखा रहता है "ड्राईवर से बातचीत ना करे" ताकि ड्राईवर बिना व्यवधान के गाडी चलाते समय मोबाइल पर बात कर सके।

माता-पिता और गुरुओ के बाद मुझे बस कंडक्टर ही सबसे प्रेरणास्पद व्यक्तित्व लगता है क्योंकि वो भी तमाम कठिनाईयो के बावजूद आपको हमेशा "आगे बढ़ने" की प्रेरणा देता है। मुझे हमेशा से ही कंडक्टर नाम का व्यक्तित्व असामान्य और अद्भुत लगता रहा है क्योंकि जब  रजनीकांत जैसा "महामानव असल ज़िंदगी में "कंडक्टर" की भूमिका निभा चुका हो तो कंडक्टर एक सामान्य व्यक्ति भला कैसे हो सकता है! मेरी राय में कंडक्टर किसी पार्टी हाई-कमान से कम हैसियत नहीं रखता है क्योंकि पार्टी हाई-कमान के बाद कंडक्टर ही एक ऐसा ऐसा व्यक्ति है जो "टिकट"देने में सबसे ज़्यादा आनाकानी करता है। विज्ञान के लिए टच-स्क्रीन पद्धति भले ही नई हो लेकिन कंडक्टर तो सदियो से "टच-पद्धति" का उपयोग कर खचाखच भरी बस में भी किसी भी कोने सेे किसी भी कोने तक पहुँचते रहे है। कंडक्टर के पास समय और "छुट्टे" की हमेशा किल्लत रहती है।

कंडक्टर दुनिया में पहला ऐसा इंसान है जिसे देखकर मुझे पता  लगा की कान का उपयोग एक "पेन-स्टैंड" की तरह भी किया जा सकता है।  खचाखच भरी बस में कंडक्टर के कर्कश स्वर और उसके बार बार सीटी बजाने का फायदा ये होता है आदमी जितनी देर बस में होता है उतनी देर आजकल के फ़िल्मी म्यूजिक को मिस नहीं करता है ।

चाहे कोई कितनी भी बुराई कर ले लेकिन मुझे तो ड्राईवर और कंडक्टर दोनों अभिभावको की तरह "केयरिंग" लगते है क्योंकि लंबे सफ़र के दौरान वही तय करते है कि आप को  कहाँ टॉयलेट के लिए जाना, कौनसी होटल में खाना है और वापस कितनी देर में आकर बस में बैठना है।

दुनिया की हर जोड़ी की तरह ड्राईवर और कंडक्टर की जोड़ी भी बहुत खूबसूरत है बेशर्त इसे HD नज़रिए से देखा जाए।  बस के सफ़र में ड्राईवर और कंडक्टर को अपना हमसफ़र बनाएंगे तो कभी "सफ़र" (Suffer) नहीं करेंगे और अगर नहीं बनाएँगे तो टिकट के साथ साथ सफ़र भी जैसे तैसे कट ही जाएगा।


तारीख: 18.06.2017                                    अमित शर्मा 









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