लघु कथा - अनहोनी भी बनी सुखदाई

मैं प्रातःकाल अपने कार्यस्थल के लिए निकली। बहुत जल्दी में थी। विद्यालय पहुँचने में देरी हो रही थी। रास्ते में बाइक की रफ़्तार भी बहुत तेज़ थी। जैसे ही थोड़ा आगे निकली, सामने बाइक से टकरा गई। मैं बेहोश हो गई, कुछ व्यक्ति मुझे अस्पताल लेकर गए। काफ़ी दिनों तक मैं विद्यालय नहीं जा पाई। चूँकि मैं तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी।

लेकिन थोड़ा ठीक होने के बाद भी मैं वहाँ जाने में असमर्थ थी। मैंने सुविधा के दृष्टिकोण से नज़दीक के उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रतिनियुक्ति करवाई। वहाँ व्याख्याता के पद रिक्त थे।
मुझे बड़ी कक्षाओं में पढ़ाने का मौका मिला। धीरे-धीरे मेरी इच्छा व्याख्याता पद पर काम करने की होने लगी, मुझे लगा कि व्याख्याता की तैयारी करनी चाहिए। मैंने तैयारी शुरू की, बच्चों को पढ़ाने में और भी रुचि जाग्रत हुई। परीक्षा देने के पश्चात परिणाम आया। मेरा चयन हो चुका था।

कक्षा बारह के विद्यार्थियों को विदाई देने का समय आया। मैं उनके साथ घुलमिल चुकी थी, मेरी आँखें नम थीं। मैंने सोचा कि बालिकाओं के लिए महाविद्यालय स्तर पर भी मुझे कुछ करना चाहिए। एक बार फिर मैंने प्रोफ़ेसर पद की तैयारी का निर्णय लिया, जिससे मैं कॉलेज में उनके आगे बढ़ने में मदद कर सकूँ।

अंततः मेरा उस पद के लिए भी चयन हो गया। मैं आज भी बालिकाओं के लिए हर समय तैयार रहती हूँ। लेकिन मैंने स्वयं भी उस विद्यालय में आकर प्रगति की। तृतीय श्रेणी से प्रोफ़ेसर बन गई। आज मेरी वह प्रथम दुर्घटना, 'कुत्ते से टकराना', मेरे लिए सुखद बन गई।


तारीख: 03.06.2025                                    बबिता कुमावत




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