वो मेरे पास अपनी सच्ची भक्ति लेकर आई थी। भावनाओ का भूखा मैं उसके निश्छल आस्था के बहाव मैं भी बह गया
आखिर वो अभिशप्त रात आ हीं गई आधी रात मूसलाधार बारिस और उसकी माँ की पीड़ा। सब एक कहर की तरह था। उसके पिता नगें पावँ तेज़ कदमों से मन्दिर की ओर निकल गए सन्नाटे को चीरता हुआ बिजली की गती सी मुनियाँ का मजबूत स्वर पापा मैं भी चलूँगी भगवान जी के पास। अटल विश्वाश को लेकर वो मेरे मूर्ति के सामने झुक गई।
रुधे गले से बोली भगवान जी मेरे सारे खिलौने मेरी प्रिय बाँसुरी जो माँ मेले से लाई थी। वो सब ले लो। मेरी माँ को ठीक कर दो।
उसकी मा कैन्सर से पीड़ीत थी.
उसके स्वर में अपनापन भरा आदेश और भावपूर्ण प्रार्थना थी। जो पूरे ब्रह्माण्ड को स्वीकार हुई।
बारिस थम चुकी थी मुनिया घर की ओर चल दी दरवाज़े पर उसकी माँ बाहें पसारे खड़ी थी मुनिया दौड़ कर माँ से लिपट गई। अभिभूत होकर मैं यह दृश्य देखता रह गया।