कभी चुपके से किसी को देखा
कभी किसी से नज़रें हैं चुराईं
कभी घूरा किसी को इन आँखों ने
कभी किसी को प्यार से है सराहा
कभी गुस्से से किसी को है देखा
कभी किसी पर ये हैं मुस्कुराईं
कभी बहाए आँसू किसी के ग़म में
कभी किसी खुशी में ये भर आईं
कभी पथराईं ये किसी के इंतज़ार में
कभी किसी की झलक हर पल है दिखाई
कभी अनजाने चहरों में किसी की छवि दिखाई
कभी किसी को देखकर भी ना पहचान पाईं
कभी छुपाया दर्द किसी का अपने अंदर
कभी किसी का प्यार ज़माने से ना छुपा पाईं
कभी माँ की ममता किसी के लिए छलकाईं
कभी किसी बाप का गुरूर बन के सामने आईं
मत पूछो कैसा है जादू इन आँखों का
एक पल में सालों की झलक है इन्होनें दिखाई