ऐ खुदाया

हिदायतें, रवायतें, मन्नतों, चाहतों के सजे बाजार 
अहसासों के दरमियां बिक जाने को दिल चाहता है

आफत, उजाङ, उम्मीद, प्यार, हर रंग तेरा ही नूर
फिर भी, तेरे आगोश में आने को दिल चाहता है

बङे अजब से अज़ाब बख्श जाते हैं कुछ अजीज
ना जाने क्यूं फिर भी उन्हें पाने को दिल चाहता है

हार सा गया हूं, बेगैरत झूठी मुस्कुराहटों के बीच 
अब खुल के हंसने ओ हंसाने को दिल चाहता है

बूझते से दिये, आज देने लगे हैं इब्रत-ओ-ख़ूर्शीद
कर काबिल, इन्हें औकात बताने को दिल चाहता है

हूं इन्सां, अगल़ातों पर हक बनता है कि मेरा
पर तूझे कभी कभी समझाने को दिल चाहता है

इक़बाल ना बख्श, नहीं चाहिये, ना सही मगर
ऐ खुदाया........... 

वक्ते-आफ़ात में तेरा दिदार पाने को दिल चाहता है


अज़ाब= पीड़ा
इब्रत-ओ-ख़ूर्शीद = सूर्य को चेतावनी
अगल़ात = अशुद्धियां
इकबाल = सौभाग्य, समृद्धि
आफ़ात = दुर्भाग्य, कठिनाइयां


तारीख: 06.06.2017                                    उत्तम दिनोदिया




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