आज एक मोड़ पे खुद से मुलाकात हुई,
कुछ देर साथ बैठे हम और चार बात हुई।
मेरे लिए अनजान था वो पर उसने मुझे पहचान लिया,
लगा मुस्कुराने मुझे देखकर और फिर मेरा नाम लिया।
थोड़ा सा सहमा पहले मैं देखकर उस अजनबी का प्यार,
जब इरादे नेक लगे तो मान लिया कोई बिछड़ा यार ।
कुछ उसने अपनी सुनाई, कुछ हमने अपनी कही ।
सुकून के कुछ पल मिले हैं, ज्यादा नहीं तो काम ही सही ।
उसने ना मेरी महफ़िल सजाई, ना ही मेरी कमियां गिनाई।
बस एक दर्पण लिए था हाथों में वो।
देखकर उसमें खुद को, अपने वजूद का मुझे एहसास हो गया ।