अकेलेपन से एकांत का सफर

कहां  आसान था तय करना 
अकेलेपन से एकांत का सफर?
सैंकड़ों ही तारीखे मैंने भुगती
आपने दिल की अदालत में
कई बार अर्जियां लगाई
होने को दाखिल तेरे वजूद में
होती गयी सबब -बेसबब सब खारिज
दब गई हो मानो
मेरी दरख्वास्त वाली फ़ाइल
कुछ जरूरी-गैर जरूरी फाईलो के नीचे
पकड़ा दिया गया हर बार 
उपेक्षा का नोटिस
सहेज रखी थी
चन्द ख्वाहिशें जो आरजू के संदूक मे
पड़ गयी दर्जनों सिलवटे उन पर
मुल्तवी कर दी गयी
बहुत बार मेरी सुनवाई
फिर एक दिन
मैं खुद से संवाद करने लगी
धीरे -धीरे  संवाद का विस्तार करने लगी
झांकने लगी अपने अंदर
बैठने लगी ख़ुद के साथ
रहने लगी खुद के साथ
ज़िद हो गयी ख़ुद को मिलने की
तलाशे-ए-तवील  खत्म हुई
खलती नही अब बेरुखी तेरी
अब कर दिए रिहा
कुछ ग़ैर ज़मानती ख्वाब
अपने दिल की सलाखों से
एक दायरा है अब
मेरे एकांत के इर्द-गिर्द
नही इजाज़त जिसमें
किसी शमूलियत की
क्योंकि अब मुझे एकांत 
प्रिय है,अकेलापन जरूरत है
औऱ एकांत आनंद........


तारीख: 07.09.2019                                    हरप्रीत कौर प्रीत




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