अपनी आवाज ढूंढ़ता हूँ

कहीं दिल के अँधेरे कोने में पड़ी

कहीं शोर में दबी

कुछ खरखराती कुछ डबडबाती

जब कुछ नहीं कह पाती

और फिर चिल्लाती

अपनी वो आवाज ढूंढता हूँ

 

कोशिश करता हूँ बात को रखने की

शब्दों में उलझ जाता हूँ पर

जब जज़्बात को बयां करता हूँ

सही गलत के फेर में

दो की चार करता हूँ

 

जो साथ दे मेरा

शब्दों की लहरों

और उन लहरों के समंदर में

विश्वास की नाव सा

वो आवाज़ ढूंढता हूँ

 

वजह क्या है

या कौन है

मैं हूँ ?

सिर्फ मैं ही हूँ या और भी हैं?

ये बात कुछ इस तरह से साफ़ करता हूँ

 

वो ख्याल हैं

जो सिर्फ ख्यालों में ही हैं

वो दूसरों की दी मिसाल हैं

जो सिर्फ मिसालों में ही हैं

मेरे इन मुखोटों को

चीर कर

जो निकल जाये

इस दिल की वो

आवाज़ ढूंढता हूँ

 

जब थक जाता हूँ ये सब सोच कर

नहीं कह पता सबकुछ भी बोल कर

एक कोने में फिर बैठ कर

एक कलम के सहारे

शब्दों को फिर आवाज़ देता हूँ

किसी तरह से भी

अपनी आवाज़ ढूँढता हूँ


तारीख: 20.03.2018                                    अमित कस्तूरी









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