हर किसी को चाहिये सुसंस्कृत नारी
जो बस उसके के ही गीत गायेगी
खुद के लक्षण हों चाहे शक्ति कपूर जैसे
पर बीबी सपनों में, सीता जैसी आयेगी
रूप लावण्य से भरी होनी चाहिये
जवानी भी पूरी खरी होनी चाहिए
सामने बोलना मंजूर ना होगा हरदम
नौकरी भी करती हो तो छा जायेगी
घर के काम में दक्षता होना तो लाजिमी है
जो उसे दबा के ना रखे, वो कैसा आदमी है
मर्द तो बेमतलब कुछ भी बोल सकता है
उसने जो सही भी बोला, तो मार खायेगी
लङका ताश खेलते हुए भी बिजी माना जायेगा
पर लङकी की बिमारी भी कामचोरी कहलायेगी
आदमी तो 10 से 5 की नौकरी से थक-हार जाता है
औरत सुबह 5 से रात 10 तक भी कैसे थक जायेगी
क्या हुआ अगर,जमाने में कोई उसे ना पूछे
घर में आकर तो परमात्मा ही होगा आदमी
पर अगर कोई एक-आधा देव गुण चाहे पत्नी
तो असुरों का प्रतिरूप, अपने बेडरूम में पायेगी
पराई दिखे सन्नी लियोन, पर घर वाली गंगा ही हो
जिसने भी ये सोच बनाई, उसका भी चंगा ही हो
कि, इक चाबी से कई ताले खुले, तो "मास्टर की"
ताला कई चाबी से खुले, तो खराबी मानी जायेगी
मैं भी एक औरत में ये सभी गुण देखना चाहता हूं
पर गंगा पाने के लिए, शिव होना भी तो जरूरी है
कुछ दिन, उसके साथ, उस जैसा जल कर देखो
देखना, गंगा कैसे ना आपकी जटाओं में समायेगी
भोले ने भी, गौरा को, अपना आधा रूप ही जाना था
इसलिये तो गौरा ने भी, श्मशानों को महल माना था
दोनों हैं, इक दूजे के पूरक, एक क्यूं कम कहलायेगी
जो एक को माना दोयम, तो ये लेखनी यूं ही गायेगी