अज़ाब नज़र आता है

सुबह हुई मग़र बागीचों में सन्नाटा पसरा,
परिंदा भी सहमा सा नज़र आता है।
गली कूंचों से हँसी के ठहाके ग़ायब,
इबादत भी बन्द कमरों में मायूस शायद।।

सेहत के लिए सैकड़ों नुस्ख़े देता,
आज बाहर भी निकलने से कतराता हूँ।
मिला अगर तो गले मिलता, मुस्कुराता था,
आज दूर से आदाब कर सहम जाता हूँ।।

ताउम्र फ़कीरी का लिबास जिस पर,
मुँह ढककर निकलता मग़फिरत के लिए।
जिन लोगों को आपस मे लड़ते देखा,
आज ख़ुद की हिफाज़त में गिड़गिड़ाते देखा।।

मासूम चेहरे पर आंसू का सैलाब देखा,
ढूंढते अपनों की चाहत में बिखरा देखा।
इबादतखानों में  मज़मा इबादत के लिए,
आज अस्पतालों में इबादत का मज़मा देखा।।

तरक्क़ी की आड़ में अज्ञान नज़र आता है,
तेरे करतूतों में  विनाश नज़र आता है।
मामूली तूफ़ां नही जिसको रोका जाये,
क़ुदरत से खिलवाड़ का अज़ाब नज़र आता है।।


तारीख: 06.04.2020                                    ज़हीर अली सिद्दिक़ी









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