बहते हुए समय में
डोलती तैरती आशाएं हो
कभी धारे के साथ चलें
कभी चीड़ते पार लगे
कभी मझधार में भी रुके
जहाँ दोनों किनारे धूमिल हो
मन में थोड़ा डर भी हो तो
इरादों में कोई ढील नहीं
किनारे तक जाने की चाह में
स्वतः प्रेरणा मिल जाएगी
कौशल्य के पतवार फिर
अपने बलशाली वार से ले जाएगी
ठोस भूमि की पहुँच तक
जहाँ ख्वाब सच बनकर मिलेंगे