बचपन प्यारा बीत गया
काल सुनहरा बीत गया
मीठी मीठी मुस्कान थी
मधु सी मधुर जुबान थी
बाल्य राहें आसान थी
मधुरिम दौर बीत गया
शरारतें खूब करते हम
मस्तियाँ खूब करते हम
मटरगस्तियाँ करते हम
शरारती दौर बीत गया
ढीली निक्कर हाथों में
नली बहती रहे नाकों में
धूल चढ़़ी रहती सांसों में
मस्ताना दौर बीत गया
हम बच्चों की टोली थी
टोली में मनाते होली थी
प्यारी सी एक खोली थी
मौजों का दौर बीत गया
दुनियादारी से अंजान थे
हमारे स्वर्णिम अरमान थे
दिल भोले और नादान थे
रंग भरा तराना बीत गया
ननिहाल. बहुत प्यारा था
वहाँ सभी का दुलारा था
नानी का लाड़ न्यारा था
सत्कार जमाना बीत गया
पोखर में गोते लगाते थे
पूँछें पकड़ कर नहाते थे
सुरताल राग मिलाते थे
हर्षित जमाना बीत गया
बारिश में भीग जाते थे
किश्तियाँ खूब चलाते थे
पानी में दौड़ लगाते थे
सुहाना जमाना बीत गया
घर में कोहराम मचाते थे
सिर आसमान उठाते थे
कौतूहल,धमाल मचाते थे
बरसाती मौसम बीत गया
जब चोरी पकड़ी जाती थी
डांट फटकार पड़ जाती थी
मम्मी ढांढस बंधवाती थी
वो हसीन जमाना बीत गया
दादी कहानियां सुनाती थी
माँ लोरी गाकर सुलाती थी
पिता फटकार सीखाती थी
स्वर्णिम जमानत बीत गया
खेल खेलते लड़ पड़ते थे
हंसते,रोते गले लग जाते थे
संग संग पढ़ते,खाते-पीते थे
बेहतरीन जमाना बीत गया
बाल्यकाल बहुत मस्ताना है
जिंदादिल से भरा जमाना है
सुखविंद्र बचपन दीवाना है
जो तेज गति से है बीत गया