अपनी बेताबी का शिकवा,
कभी नहीं कर पाये हम ।
चाँद तुम्हारें लिए प्यार का,
अम्बर से ले आये हम ।।
डूब गया सूरज, सागर की,
गहराई में शाम ढ़ले ।
देख तुम्हारें मूँद नयन को,
बेबस होकर आये हम ।।
सावन के कुछ गीत भ्रमर ने,
गाये तो एहसास जगा ।
तन-मन-धन सर्वस्व लुटाकर,
उनके दर से आये हम ।।
पीयूष अभी निशि और हैं बाकी,
जमकर राग सुनाए जा ।
आज मोहब्बत की महफ़िल में,
आशिक बनकर छाये हम ।।